ख़ाम होने के इंतिज़ार में हूँ By Ghazal << नहीं समझी थी जो समझा रही ... तुम से राह-ओ-रस्म बढ़ा कर... >> ख़ाम होने के इंतिज़ार में हूँ आम होने के इंतिज़ार में हूँ मैं जिसे काम ही नहीं कोई काम होने के इंतिज़ार में हूँ रख के शीशा-ओ-जाम सामने मैं शाम होने के इंतिज़ार में हूँ अपनी गुमनाम हसरतों में 'वफ़ा' नाम होने के इंतिज़ार में हूँ Share on: