ख़ामोश हूँ मैं लब पे शिकायत तो नहीं है फ़रियाद करूँ ये मिरी आदत तो नहीं है जो मौज-ए-ग़म-ओ-दर्द उठी है मिरे दिल में हंगामा तो बे-शक है क़यामत तो नहीं है शायद मुझे मिल जाए मिरे दर्द का दरमाँ उम्मीद सही चैन की हालत तो नहीं है फ़ुर्सत में मुझे याद भी कर लीजिए इक दिन ये अर्ज़ मोहब्बत की अलामत तो नहीं है मिल जाए सर-ए-राह किसी मोड़ पे कोई इक हादसा बे-शक है रिफ़ाक़त तो नहीं है इंसाफ़ जिसे हक़ का तरफ़-दार कहें सब इस मुल्क में क़ाएम वो अदालत तो नहीं है क्यूँ घर से निकलते हुए डरते हैं यहाँ लोग इस शहर में क़ानून-ए-हिफ़ाज़त तो नहीं है अल्लाह रज़ा पर तिरी राज़ी ही रहूँगी हो शिकवा ज़बाँ पर ये जसारत तो नहीं है आबाद रहा दिल में वही एक 'सबीला' अब ग़ैर को आने की इजाज़त तो नहीं है