ख़ामोश निगाहों से वो यलग़ार का होना मिलता है नफ़ी में किसी इक़रार का होना महफ़ूज़ मिरे ख़्वाब को बतलाता नहीं है इक अक्स-ए-तरद्दुद में निगह-दार का होना हैरत में नहीं डालता अब शहर-ए-गुमाँ को हर रोज़ लहू-रंग में अख़बार का होना आसार-ए-तअ'ल्लुक़ को जला देता है अक्सर गुमनाम किसी दर्द में ग़म-ख़्वार का होना रस्ते के तकल्लुफ़ से चलो बात करें कुछ मुमकिन नहीं हर मोड़ पे घर-बार का होना लम्हों के इशारों से अयाँ होने लगा है गलियों में मिरे यार की अग़्यार का होना करता है बहुत याद शब-ओ-रोज़ मिरा दिल फूलों के नगर में रह-ए-पुर-ख़ार का होना अक़्लीम-ए-जफ़ा-केश में तुम देखना 'जाफ़र' लाज़िम है पस-ए-दर किसी दीवार का होना