ख़ामुशी ही ख़ामुशी में दास्ताँ बनता गया मेरा हर आँसू मिरे ग़म की ज़बाँ बनता गया आप का ग़म जब शरीक-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ बनता गया अश्क का हर क़तरा बहर-ए-बे-कराँ बनता गया ज़ुल्म टूटा ही किए क़ाएम रही शान-ए-अमल बिजलियाँ गिरती रहीं और आशियाँ बनता गया धीरे धीरे याद उन की दिल में घर करती रही रफ़्ता रफ़्ता इश्क़ उन का जुज़्व-ए-जाँ बनता गया मेरी हस्ती भी तिरे जल्वों में गुम होती गई तेरा जल्वा भी फ़रोग़-ए-ला-मकाँ बनता गया रंग लाया इस क़दर ज़ौक़-ए-जबीन-ए-बंदगी हर निशान-ए-सज्दा तेरा आस्ताँ बनता गया जब तक ऐ 'जुम्बिश' रहे वो माइल-ए-लुत्फ़-ओ-करम हर नफ़स इक ज़िंदगी-ए-जाविदाँ बनता गया