ख़ाना-ए-दिल में तेरा अक्स बना रखा है हम ने तस्वीर को शीशे में सजा रखा है जिस का जी चाहे चला आए हमारे घर में हम ने इस वास्ते दरवाज़ा खुला रखा है शम्अ' गुल कर दो नहीं इस की ज़रूरत हम ने दिल-ए-पुर-नूर से ऐवान सजा रखा है उस के जलवों को किया दैर-ओ-हरम तक महदूद अहल-ए-दुनिया ने ये क्या स्वाँग रचा रखा है तुम भी कह लो मुझे जो दिल में तुम्हारे आए वैसे क्या कहने को दुनिया ने उठा रखा है कोई पढ़ ले न तिरे नाम का पैग़ाम उन में हम ने इस डर से निगाहों को झुका रखा है यूँ ही कुछ कम न थे दीवाने कि अब और हमें आप के हुस्न ने दीवाना बना रखा है दर्द बेचैन है सीने में मगर हम ने 'नज़र' दर्द की चीख़ को आहों में दबा रखा है