ख़ानदानी क़ौल का तो पास रख राम है तो सामने बन-बास रख आस के गौहर भी कुछ मिल जाएँगे यास के कुछ पत्थरों को पास रख तू इमारत के महल का ख़्वाब छोड़ ख़्वाब में बस झोंपड़ी का बास रख महज़ तेरी ज़ात तक महदूद क्यूँ मौसमों के कैफ़ का भी पास रख दहर में माज़ी भी था तेरा न भूल आने वाले कल में भी विश्वास रख तुझ को अपने ग़म का तो एहसास हो अपने पहलू में दिल-ए-हस्सास रख दौलत-ए-इफ़्लास तुझ को मिल गई दौलत-ए-कौनैन की अब आस रख मुब्तदी को लौह से है वास्ता तू तो है अहल-ए-क़लम क़िर्तास रख बोस्ताँ सब को लगे तेरा वजूद अपने तन में इस लिए बू-बास रख ये ज़माँ है तेज़-रौ घोड़ा नहीं हाथ में अपने न उस की रास रख साहिब-ए-मक़्दूर है माना 'फ़िगार' ये तुझे किस ने कहा था दास रख