ख़ंजर की तरह उतरे है जो बात करो हो अपनों पे ये तुम कैसी इनायात करो हो जब बरमला कहने की यहाँ रस्म नहीं है फिर किस लिए तुम पुरशिश-ए-हालात करो हो या कहते थे तुम खुल के कहो जो भी है दिल में या कहते हो तुम हम से शिकायात करो हो या हम से घड़ी-भर की जुदाई थी क़यामत या हम से घड़ी-भर भी न अब बात करो हो देखो कभी उस को भी जो है चेहरों के पीछे कहने को तो तुम सब से मुलाक़ात करो हो हम दिल-ज़दगाँ को भी तो आ कर कभी पूछो तुम सब पे करम सब पे इनायात करो हो इस कूचा से गुज़रो हो न तुम उस से मिलो हो इस शहर में कैसे गुज़र औक़ात करो हो तस्बीह थी उस नाम की हर-वक़्त या अब तुम अल्लाह की दिन-रात मुनाजात करो हो है तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ भी तो यक-गूना तअ'ल्लुक़ क्यूँ उस की ज़माना से शिकायात करो हो वो तुम से ख़फ़ा है तो उसे जा के मना लो क्यूँ और ख़राब अपने ये हालात करो हो 'इक़बाल' उठो काम में अब जी को लगाओ किस ध्यान में बर्बाद ये दिन-रात करो हो