ख़ार मतलूब जो होवे तो गुलिस्ताँ माँगूँ बिजली गिरने को जो जी चाहे तो बाराँ माँगूँ शम्अ गुल होवे जो सुब्ह-ए-शब-ए-हिज्राँ माँगूँ ओस पड़नी भी हो मौक़ूफ़ जो याराँ माँगूँ ख़ाक में भी जो मिलूँ मैं तो किसी सहरा में तुम से मिट्टी भी न ऐ गब्र ओ मुसलमाँ माँगूँ बख़्त-ए-वाज़ूँ ने ज़बाँ को ये असर बख़्शा है तल्ख़ी-ए-मर्ग मज़ा दे जो नमकदाँ माँगूँ ख़ाना-ए-दिल में करूँ दाग़-ए-मोहब्बत को तलब रौशनी के लिए इस घर के जो मेहमाँ माँगूँ पादशाही से फ़क़ीरी का है पाया बाला बोरिया छोड़ के क्या तख़्त-ए-सुलैमाँ माँगूँ रंज से इश्क़ के है राहत-ए-दुनिया बद-तर ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ हूँ अगर मैं गुल-ए-ख़ंदाँ माँगूँ दे दिया कीजिए सौदाई तुम्हारा हूँ मियाँ सूँघने को जो कभी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ माँगूँ आशिक़-ए-दस्त-ए-निगारीं हूँ अजब क्या इस का भीक दरिया से अगर पंजा-ए-मर्जां माँगूँ मेवे पर बाग़-ए-जहाँ में हो जो दिल को रग़बत शजर-ए-हुस्न से मैं सेब-ए-ज़नख़दाँ माँगूँ जामा-ए-जिस्म भी रखने का नहीं दस्त-ए-जुनूँ पैरहन-ए-ख़ाक में दीवाना-ए-उर्यां माँगूँ यास-ओ-हिरमाँ हूँ जो लोहे के चने भी तो चबाऊँ नेमत-ए-इश्क़ के क़ाबिल लब-ओ-दंदाँ माँगूँ मिलती हो माँगने से बाग़-ए-जहाँ में जो मुराद गुल से बुलबुल के कफ़न के लिए दामाँ माँगूँ कब से दर पर तिरे साइल हूँ मैं 'आतिश' की तरह वो मिले मुझ को जो कुछ ऐ शह-ए-ख़ूबाँ माँगूँ