ख़राब-ए-दीद को यूँ ही ख़राब रहने दे कोई हिजाब उठा दे नक़ाब रहने दे ज़मान-ए-हिज्र सही फिर भी ऐ जुनून-ए-उम्मीद दिमाग़ में यही रंगीन ख़्वाब रहने दे नवाज़िशें न बदल दें कहीं मिज़ाज-ए-वफ़ा निगाह-ए-लुत्फ़ में मौज-ए-इताब रहने दे बदल न होश-ए-परस्तिश से मस्ती-ए-उल्फ़त तजल्लियों पे फ़रेब-ए-नक़ाब रहने दे वुफ़ूर-ए-हुस्न को असरार-ए-दिल-नवाज़ सिखा नज़र-नवाज़ी-ए-रंग-ए-शबाब रहने दे हुज़ूर-ए-हुस्न है बस अर्ज़-ए-इश्तियाक़ 'सुहा' फ़साना-ए-दिल-ए-ख़ाना-ख़राब रहने दे