ख़राब-ओ-ख़स्ता हुए ख़ाक में शबाब मिला हमें ये दिल न मिला जान का अज़ाब मिला किसी की याद में बे-शुबह बे-क़रार है तू कि आज है तिरी शोख़ी में इज़्तिराब मिला शराब पी तो गुनहगार मैं हुआ वाइ'ज़ बुराई की जो मिरी तुझ को क्या सवाब मिला मिले वो ऐश-ए-गुज़िश्ता भी ऐ ख़ुदा मुझ को बहिश्त में जो दोबारा मुझे शबाब मिला बड़ी करीम है पीर-ए-मुग़ाँ की भी सरकार कि जब मिला मुझे साग़र अलल-हिसाब मिला कुछ आरज़ू न रही तर्क-ए-आरज़ू के सिवा मिरे सवाल का ऐसा मुझे जवाब मिला गया जो दिल तो मिला दाग़-ए-आरज़ू मुझ को इक आफ़्ताब जो खोया इक आफ़्ताब मिला 'हफ़ीज़' तुम को वो नाकाम-ए-वस्ल कहते हैं बुरा न मानो ये अच्छा तुम्हें ख़िताब मिला