ख़त्म आख़िर ये सिलसिला न हुआ पेश कब कोई हादिसा न हुआ देखना रू-ए-यार की तस्वीर दिल-ए-सद-पारा आइना न हुआ मौत क्या है हयात क्या शय है आज तक हल ये मसअला न हुआ अस्ल और नक़्ल में है फ़र्क़ बड़ा कभी कोई सनम ख़ुदा न हुआ शर्त-ए-उल्फ़त बरहना-पाई है पाँव में किस के आबला न हुआ बहर-ए-हस्ती में उम्र चंद नफ़स पानी में कोई बुलबुला न हुआ जा चुकी थी निगाह मंज़िल तक हैफ़ तय वो भी फ़ासला न हुआ दोस्त हो या अज़ीज़ ही कोई न हुआ कोई भी मिरा न हुआ बख़्शिशें उस की आम हैं 'माहिर' हम थे कमज़ोर हौसला न हुआ