ख़त्म हो कर भी चल रही है कहीं दास्ताँ जो कि रुक गई है कहीं शे'र इक दर्द की अमानत है दर्द जिस में अभी कमी है कहीं जिस्म भी थक के सो गया आख़िर साँस भी साँस ले रही है कहीं दिल की टूटी है बाँसुरी ऐसे ग़म की नागिन भी रो रही है कहीं चाँद पर मौत की उदासी है चाँदनी शब पे मर-मिटी है कहीं मेरी आँखों से प्यार की नदिया उस की आँखों में डूबती है कहीं