ख़त्म होगी कब ये वहशत ऐ ख़ुदा कब फ़ैसला होगा ख़ाक में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा मिल जाएगी तब फ़ैसला होगा शाख़-ए-गुल काफ़ी रऊनत है अभी सूरज के लहजे में धूप जब पेड़ों से उतरेगी तो फिर सब फ़ैसला होगा दिन सवा नेज़े पे चढ़ता है तो चढ़ने दें अभी दिन है दिन के सीने से गुज़र कर आज की शब फ़ैसला होगा शहर भर में देखना उस रात गुल होंगे दिए सारे जुज़ हवा कोई नहीं होगा मिरा जब फ़ैसला होगा ऐ फ़लक अब जिस में जितनी ताब है वो आज़माए सब ऐ ज़मीं रक़्स-ए-जुनूँ की शर्त पर अब फ़ैसला होगा