ख़तरा सा कहीं मेरी इकाई के लिए है हर लम्हा यहाँ ख़ुद से जुदाई के लिए है इक हाथ को कुछ करने की आदत नहीं डाली जो दूसरा है सिर्फ़ गदाई के लिए है हर शख़्स की है शाम से अपनी कोई निस्बत मेरे लिए तो दिन से रिहाई के लिए है दिन सारा गुज़र जाता है इक दूरी में ख़ुद से और शाम किसी और जुदाई के लिए है मौक़ा है कि एहसान कोई उस का चुका दूँ इक लम्हा मिरे पास बुराई के लिए है है कौन झटक दे जो किसी दस्त-ए-जफ़ा को ये ख़ल्क़-ए-ख़ुदा सिर्फ़ दुहाई के लिए है अब ख़ूँ को बनाना है तिरे होंट की सुर्ख़ी बच जाएगा जो दस्त-ए-हिनाई के लिए है तोहमत सी कोई ख़ुद पे लगा रक्खी है 'शाहीं' इक दाग़ सा अंगुश्त-नुमाई के लिए है