ख़ूब आज़ादी-ए-सहाफ़त है नज़्म लिखने पे भी क़यामत है दा'वा जम्हूरियत का है हर-आन ये हुकूमत भी क्या हुकूमत है धाँदली धोंस की है पैदावार सब को मा'लूम ये हक़ीक़त है ख़ौफ़ के ज़ेहन-ओ-दिल पे साए हैं किस की इज़्ज़त यहाँ सलामत है कभी जम्हूरियत यहाँ आए यही 'जालिब' हमारी हसरत है