ख़ूब नासेह की नसीहत का नतीजा निकला हम ने अश्कों को सँभाला तो कलेजा निकला तेरे रिंदों को जलाती रही सहराओं की धूप कितना बे-फ़ैज़ तिरी ज़ुल्फ़ों का साया निकला ईद का चाँद जो देखा तो तमन्ना लिपटी उन से तक़रीब-ए-मुलाक़ात का रिश्ता निकला हैफ़ कि फूल हैं मुहताज-ए-नसीम-ओ-शबनम मर्हबा चीर के पत्थर को जो सब्ज़ा निकला आहट आहट पे गुमाँ गुज़रे है वो आ पहुँचे दिल-ए-नादाँ के बहलने का तरीक़ा निकला दामन-ए-दोस्त ने बोसों से नवाज़ा 'रहमत' मुझ से बेहतर मिरे अश्कों का नसीबा निकला