ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं यक निगह में ग़ुलाम करते हैं देख ख़ूबाँ कूँ वक़्त मिलने के किस अदा सूँ सलाम करते हैं क्या वफ़ादार हैं कि मिलने में दिल सूँ सब राम-राम करते हैं कम-निगाही सों देखते हैं वले काम अपना तमाम करते हैं खोलते हैं जब अपनी ज़ुल्फ़ाँ कूँ सुब्ह-ए-आशिक़ कूँ शाम करते हैं साहिब-ए-लफ़्ज़ उस कूँ कह सकिए जिस सूँ ख़ूबाँ कलाम करते हैं दिल लजाते हैं ऐ 'वली' मेरा सर्व-क़द जब ख़िराम करते हैं