ख़ूब-रूयों से यारियाँ न गईं दिल की बे-इख़्तियारियाँ न गईं अक़्ल-ए-सब्र-आश्ना से कुछ न हुआ शौक़ की बे-क़रारियाँ न गईं दिन की सहरा-नवर्दियाँ न छुटीं शब की अख़्तर-शुमारियाँ न गईं होश याँ सद्द-ए-राह-ए-इल्म रहा अक़्ल की हरज़ा-कारियाँ न गईं थे जो हमरंग-ए-नाज़ उन के सितम दिल की उम्मीदवारियाँ न गईं हुस्न जब तक रहा नज़्ज़ारा-फ़रोश सब्र की शर्मसारियाँ न गईं तर्ज़-ए-'मोमिन' में मरहबा 'हसरत' तेरी रंगीं-निगारियाँ न गईं