ख़ुद अपनी आँच से इक शख़्स जल गया मुझ में ये मैं नहीं हूँ तो फिर कौन ढल गया मुझ में ये किस ने छेद के रख दी मिरी अना की सिपर ये कौन तीर की मानिंद चल गया मुझ में फिर उस की याद में दिल बे-क़रार रहने लगा फिर एक बार ये पत्थर पिघल गया मुझ में ये आइने में मिरे अक्स के सिवा क्या था कि एक शख़्स अचानक दहल गया मुझ में कुछ ऐसे हब्स भरे रोज़-ओ-शब मिले मुझ को कि एक पाए का फ़नकार गल गया मुझ में किसी तरफ़ से सहारा मिला न जब कोई तो एक डोलता इंसाँ सँभल गया मुझ में धनक के रंग भला कौन छू सका 'ज़ामिन' ये आज क्यूँ मिरा बचपन मचल गया मुझ में