ख़ुद अपनी ज़ात की तश्हीर कू-ब-कू किए जाएँ ख़ुदा मिले न मिले उस की जुस्तुजू किए जाएँ अजीब जारी हुआ अब के हुक्म-ए-हाकिम-ए-शहर असीर सारे तरफ़-दार-ए-रंग-ओ-बू किए जाएँ हमें पसंद नहीं ज़र्फ़-ए-मय में क़तरा-ए-मय हमारे सामने ख़ाली ख़ुम-ओ-सुबू किए जाएँ जहाँ भी आएँ नज़र चाक चाक दामन-ए-दिल वो तार पैरहन-ए-इश्क़ से रफ़ू किए जाएँ कुछ अब के ऐसे पड़ा साया-ए-तुनुक-ज़र्फ़ी समुंदरों को भी हम लोग आबजू किए जाएँ ख़िज़ाँ ने जिन के मुक़द्दर में ज़र्दियाँ लिख दीं हम उन गुलाब-रुतों को भी सुर्ख़-रू किए जाएँ जनाब-ए-'मोहसिन'-ए-एहसाँ से इल्तिजा है कि वो पहुँच गए हैं सर-ए-आब तो वुज़ू किए जाएँ