ख़ुद अपने आप को धोका दिया है हमारे साथ ये अक्सर हुआ है ये मुझ से ज़िंदगी जो माँगता है न जाने कौन ये मुझ में छुपा है यही मेरी शिकस्तों का सिला है कोई मेरे बदन में टूटता है किताब-ए-गुल का रंगीं हर वरक़ है तुम्हारा नाम किस ने लिख दिया है सलीब-ए-वक़्त पे तन्हा खड़ा हूँ ये सारा शहर मुझ पर हंस रहा है कभी नींद आ गई दीवानगी को कभी सहरा भी थक कर सो गया है 'शमीम' इक बर्ग-ए-आवारा था 'जामी' ख़लाओं में कहीं अब खो गया है