ख़ुद हो के कुछ ख़ुदा से भी मर्द-ए-ख़ुदा न माँग रस्म-ए-दुआ ये है कि दुआ ले दुआ न माँग नादान मा-सिवा से न कर इल्तिजा न माँग माँगे ख़ुदा से भी तो ख़ुदा के सिवा न माँग मैं अपनी बे-ज़री की नदामत को क्या कहूँ तू और शर्मसार न कर ऐ गदा न माँग उन का करम भी देख ले अपना भरम भी रख हर मुद्दई से माँग मगर मुद्दआ न माँग ख़ूगर हो दर्द का कि यही है इलाज-ए-दर्द ये किस के बस का रोग है उस की दवा न माँग रस्म-ए-तलब में क्या है समझ कर उठा क़दम आ तुझ को हम बताएँ कि क्या माँग क्या न माँग रक्खी हुई है सारी ख़ुदाई तिरे लिए हक़दार बन के सामने आ माँग या न माँग इस ख़ाक-दान-ए-दहर में घुटता अगर है दम मक़्दूर हो तो आग लगा दे हवा न माँग मिलती नहीं मुराद तो 'नातिक़' ख़याल छोड़ मेरी सलाह ये है कि तू रूठ जा न माँग