ख़ुद के एहसास-ए-मोहब्बत ने मुझे ज़िंदा रखा मेरे कुछ नेक ख़यालात ने ताबिंदा रखा मुझ को मुश्किल ही गुज़रती है शनासाई से क्यूँकि ऐ दोस्तो तुम ने मुझे शर्मिंदा रखा सहल-दिल हूँ तो मुझे आप ही चलना है महज़ अपने मेयार को सो ख़ुद से ही पाइंदा रखा दिल-लगी करती रही ख़ाक-ए-मुहब्बत मुझ से ज़िंदगी मैं ने तुझे रेत का बाशिंदा रखा कितने रंगों से मिरी साँस के कस-बल तोले फिर भी जी भटके नहीं ध्यान ये आइंदा रखा