ख़ुद ख़मोशी के हिसारों में रहे रात भर चर्चे सितारों में रहे थी ज़मीन-ए-गुल नज़र के सामने जादा-पैमा रेग-ज़ारों में रहे हो गए हैं कितने मंज़िल-आश्ना कितने रह-रौ रहगुज़ारों में रहे हो गईं ग़र्क़ाब कितनी बस्तियाँ कितने तूफ़ाँ जुएबारों में रहे ज़ुल्मत-ए-शब पास आ सकती नहीं मुद्दतों हम माह-पारों में रहे है ख़िज़ाँ की धूल की तन पर तहें हम रहे तो नौ-बहारों में रहे