ख़ुद को ज़िंदा रखने का संघर्ष है ये जीवन का हर पल जैसे इक वर्ष है ये सोच का पंछी जब भी उड़ानें भरता है वक़्त पटख़ कर कह देता है फ़र्श है ये मेरी ग़ज़लें क्या हैं मेरा आईना मिसरा मिसरा जीवन का आदर्श है ये कल शब चलते चलते कहाँ तक जा पहुँचा चीख़ रहा था मुझ पर कोई अर्श है ये देख के आईना लगता है ये 'अफ़रोज़' मैं हूँ या फिर ज़ख़्मों का स्पर्श है ये