ख़ुद को पहरों थकाती हूँ मैं याद के बुत बनाती हूँ मैं ध्यान हटता नहीं है मिरा ध्यान तुझ से हटाती हूँ मैं कौन तेरे सिवा है मिरा तुझ को अपना बनाती हूँ मैं जब मुझे याद आता है वो दो-जहाँ भूल जाती हूँ मैं ख़्वाब है तेरी चाहत मुझे ख़्वाब ख़ुद को दिखाती हूँ मैं जल रहा है दिए से दिया बाँटती हूँ तो पाती हूँ मैं आज नौ साल पूरे हुए अपनी वहशत मनाती हूँ मैं वाह वा की ज़रूरत नहीं ज़ख़्म लिख कर दिखाती हूँ मैं