ख़ुद से रिश्ते रहे कहाँ उन के ग़म तो जाने थे राएगाँ उन के मस्त उन को गुमाँ में रहने दे ख़ाना-बर्बाद हैं गुमाँ उन के यार सुख नींद हो नसीब उन को दुख ये है दुख हैं बे-अमाँ उन के कितनी सरसब्ज़ थी ज़मीं उन की कितने नीले थे आसमाँ उन के नौहा-ख़्वानी है क्या ज़रूर उन्हें उन के नग़्मे हैं नौहा-ख़्वाँ उन के