ख़ुद वो आते अगर यक़ीं होता दर्द पुर्सिश तलब नहीं होता दिल तो क्या जान तक फ़िदा करते तुम सा लेकिन कोई हसीं होता सज्दा करते हज़ार बार मगर कोई दर लाएक़-ए-जबीं होता इस में शामिल जो होता ज़िक्र उन का ये फ़साना बहुत हसीं होता तेरे वा'दों पे भी यक़ीं करते हम को दिल पर अगर यक़ीं होता दिल पे जब तक न उस के चोट आए आदमी काम का नहीं होता बादा मर्ग़ूब-ए-दिल है तल्ख़ी से ज़हर होता जो अंग्बीं होता हस्ती-ए-बे-सबात का 'साहिर' नक़्श कोई तो दिल-नशीं होता