ख़ुदा भी कैसा हुआ ख़ुश मिरे क़रीने पर मुझे शहीद का दर्जा मिला है जीने पर खंडर के गुम्बद ओ मेहराब जाग उट्ठेंगे उसे कहो कि वो धीरे से आए ज़ीने पर लकीर है न कोई रंग है न कलमा है ये कैसा नक़्श बनाया है मेरे सीने पर अभी उमीद नई वुसअतों की क़ाएम है अभी वो लौट के आया नहीं सफ़ीने पर छतें भी बट चुकीं आँगन भी बट चुके लेकिन छिड़ी है जंग कि हक़ किस का है दफ़ीने पर