ख़ुदा के ज़िक्र में मशग़ूल हैं जो मस्त पहाड़ समझ गए हैं यक़ीनन अदा-ए-वक़्त पहाड़ हमारी ज़ात तअ'ज्जुब की एक दुनिया है कहीं पे झील समुंदर कहीं दरख़्त पहाड़ तुम्हारे साथ दुआएँ अताएँ ज़ाद-ए-सफ़र हमारे साथ मुसलसल सराब दश्त पहाड़ ख़बर हवा से मिली है तुम्हारी आमद की मगर इसे भी समझते हैं औज-बख़्त पहाड़ जो चल पड़े तो ठहरने का फिर जवाज़ नहीं हमारे हौसले 'फ़ैसल' कि जैसे सख़्त पहाड़