ख़ुदा की मार वो अय्याम-ए-शोर-ओ-शर गुज़रे वो जिन सवार था सर पर कि सर से दर-गुज़रे हलाल भी मिरे हक़ में हराम वावैला निगाह-ए-शौक़ से क्या क्या गुल-ओ-समर गुज़रे जो सब्ज़-बाग़-ए-तमन्ना पे फेर दे पानी ख़ुदा बचाए हम ऐसी नज़र से दर-गुज़रे निकाले ऐब में सौ हुस्न हुस्न में सौ ऐब ख़याल ही तो है जैसा बंधे जिधर गुज़रे ज़मीन पाँव तले से निकल गई तो क्या हम अपनी धुन में ज़माने से बे-ख़बर गुज़रे मज़ा न पोछिए वल्लाह दिल दुखाने का कहाँ का ख़ौफ़-ए-ख़ुदा ठान ली तो कर गुज़रे अदब के वास्ते कितनों के दिल दुखाए हैं 'यगाना' हद से गुज़रना न था मगर गुज़रे