ख़ुदा को भी नहीं दिल मानता है मोहब्बत ही मोहब्बत जानता है कहीं हो लड़ ही जाती हैं निगाहें वो दिल को दिल उसे पहचानता है कलीद-ए-बाग़ उस के बख़्त में है पड़ा जो ख़ाक-ए-सहरा छानता है दयार-ए-ग़म है फ़िरऔ'नों की बस्ती कोई किस को यहाँ गर्दानता है कल उस से पूछ लेंगे हाल है क्या बहुत जो आज सीना तानता है कहीं से ढूँड कर लाओ 'जिगर' को इलाज-ए-दर्द-ए-दिल वो जानता है