ख़ुदा-नुमा है बुत-ए-संग-ए-आस्ताना-ए-इश्क़ चलूँगा पा-ए-निगह बन के सू-ए-ख़ाना-ए-इश्क़ न कम हों सिक्का-ए-दाग़-ए-दिल-ए-यगाना-ए-इश्क़ भरा पड़ा रहे यारब सदा ख़ज़ाना-ए-इश्क़ जबीन-ए-क़ैस बनी संग-ए-आस्ताना-ए-इश्क़ जुनूँ है ख़ेमा-ए-लैला सियाह-ख़ाना-ए-इश्क़ मुदाम दिल में रहे दाग़-ए-उल्फ़त-ए-साक़ी न बे-चराग़ हो यारब शराब-ख़ाना-ए-इश्क़ ये महफ़िल-ए-तरब-ए-हुस्न है नहीं मक़्तल सदा गुलू-ए-बुरीदा की है तराना-ए-इश्क़ ये कह के फिरती है दिन रात आसिया-ए-फ़लक मिले तो ख़िर्मन-ए-मह दे के लूँ मैं दाना-ए-इश्क़ है आफ़्ताब पियाला फ़रिश्ता-ख़ू साक़ी ख़म-ए-फ़लक है सुबू-ए-शराब-ख़ाना-ए-इश्क़ बस एक हाथ में दो हो के मैं ज़मीं पे गिरा क़ज़ा जो आई अदा हो गया दोगाना-ए-इश्क़ हर एक गाम पे दिल पीस्ता है अबलक़-ए-चश्म मगर है सुरमे का दुम्बाला ताज़ियाना-ए-इश्क़ जलाया तूर को इक दम में साइक़ा बन कर शरर-फ़िशाँ जो हुआ संग-ए-आस्ताना-ए-इश्क़ हो ख़ाना-ए-सदफ़-ए-दिल न किस तरह पुर-नूर कि आप है गुहर-ए-शब-चराग़ दाना-ए-इश्क़ बुतो ख़ुदा ने कहा फ़िस-सम्मा-ए-रिज़क़ोकुम आप मिला है मुझ को ये हफ़्त आसिया से दाना-ए-इश्क़ ये सच मसल है बुतो सब का है ख़ुदा रज़्ज़ाक़ नसीब-ए-ताइर-ए-दिल है अज़ल से दाना-ए-इश्क़ जो ख़ाल बन के ख़त-ए-रुख़ में दिल रहे मेरा कहूँ मैं ख़िर्मन-ए-मह में मिला ये दाना-ए-इश्क़ किसी के अबरू-ए-पुर-ख़म का ध्यान रहता है हमारा काबा-ए-दिल है सियाह-ख़ाना-ए-इश्क़ सदा-ए-मातम-ए-दिल सुन के ख़ुश वो होते हैं नवा-ए-सीना-ज़नी है कि शादियाना-ए-इश्क़ जो शौक़-ए-दीद है मूसा की तरह एक न सुन कि लनतरानी-ए-महबूब है तराना-ए-इश्क़ नक़ाब उधर वो उठाएँ इधर मैं आह करूँ समंद-ए-हुस्न पे पड़ जाए ताज़ियाना-ए-इश्क़ जो तोलिए इसे कौनैन की तराज़ू में गराँ हो वज़्न में न आसिया से दाना-ए-इश्क़ फ़रोग़-ए-बज़्म-ए-तसव्वुर है याद पिस्ताँ की हबाब-ए-हुस्न बने हैं चराग़-ए-ख़ाना-ए-इश्क़ ख़याल-ए-गौहर-ए-दन्दाँ में हम जो रोते हैं सरिश्क-ए-दीदा-ए-तर है दुर-ए-यगाना-ए-इश्क़ है मेरे दिल की तरह इस से ये परेशाँ-हाल मिला है ज़ुल्फ़ को हुस्न-ए-सियाह-ख़ाना-ए-इश्क़ चढ़ा जो दार पे आशिक़ का सर हुआ सरदार जुदा है ख़ाना-ए-आलम से कारख़ाना-ए-इश्क़ ख़ुदा का घर हो जो टूटे जिहाद-ए-नफ़्स से दिल ख़राब हो तो बने ला-मकाँ ये ख़ाना-ए-इश्क़ वो दिल लगा के सुनें दास्तान की सूरत बयान कीजिए उस हुस्न से फ़साना-ए-इश्क़ 'वज़ीर' तुख़्म-ए-मोहब्बत को दिल में बो अपने ज़मीं वो शोर है जिस में उगे न दाना-ए-इश्क़