ख़ौफ़ ता'मीर की बुनियाद में रक्खा हुआ है हादिसा सूरत-ईजाद में रक्खा हुआ है एक इम्कान छुपा था किसी लहजे में वहाँ इक तहय्युर यहाँ रूदाद में रक्खा हुआ है कैसे मिज़्गान-हया तोड़ के बाहर निकले गिर्या इक ज़ब्त की मीआ'द में रक्खा हुआ है साँस लेते ही भड़कता है मिरे सीने में इक दिया सा जो तिरी याद में रक्खा हुआ है ख़स-ओ-ख़ाशाक हुए ख़म तो खुली ख़ुश्बू-ए-ज़ुल्फ़ लुत्फ़ या'नी किसी उफ़्ताद में रक्खा हुआ है इन सितारों से भला कौन सुने चंग-ओ-रबाब ज़ख़मा-ए-बख़्त ज़मीं-ज़ाद में रक्खा हुआ है