ख़ुलूस-ए-सज्दा हर इक हाल में मुक़द्दम है वहीं पे दिल भी झुका दे जहाँ जबीं ख़म है हज़ार जल्वों से पुर-नूर बज़्म-ए-आलम है मगर चराग़-ए-मोहब्बत की रौशनी कम है हमारे हाल-ए-परेशाँ पे मुस्कुरा देना बड़ा लतीफ़ ये अंदाज़-ए-पुर्सिश-ए-ग़म है हयात-ए-इश्क़ उमीदों पे काटने वालो ख़बर भी है कि उमीदों की ज़िंदगी कम है क़फ़स में थे तो चमन के लिए तड़पते थे चमन में आए तो अहल-ए-चमन का मातम है बशर के दर पे जबीन-ए-बशर का झुक जाना क़सम ख़ुदा की ये तौहीन-ए-इब्न-ए-आदम है वो दिल चुरा के निगाहों से छुप गए 'शारिब' निगाह-ओ-दिल से मगर फ़ासला बहुत कम है