ख़ुलूस-ए-तामीर हो जो शामिल सितम का जज़्बा बुरा नहीं है वफ़ा करेंगे वो क्या किसी से जिन्हें शुऊर-ए-जफ़ा नहीं है तिरी समझ में न आ सकेगी किसी के अश्कों की क़द्र-ओ-क़ीमत अभी है ना-आश्ना-ए-ग़म तू अभी तिरा दिल दुखा नहीं है वफ़ा की अज़्मत से आश्ना हैं कहें तो रूदाद-ए-ग़म कहें क्या तुझे नदामत हो जिस को सुन कर वो दास्तान-ए-वफ़ा नहीं है ख़ुदा-न-कर्दा तुम्हारे दिल को कोई दुखाए तो क्या करोगे निगाहें तुम ने तो ऐसी फेरीं कि जैसे मेरा ख़ुदा नहीं है वो खोया खोया सा उन का आलम लबों पे हल्की सी मुस्कुराहट अदा ये उन की 'मतीन' जैसे सुना भी है और सुना नहीं है