ख़ूँ बहाने का बहाना है भला मेरे बाद तीन दिन पान भी खाना न ज़रा मेरे बाद फ़ातिहा पढ़ के वो रोने जो लगा मेरे बाद शोर-ए-महशर मिरे मदफ़न पे उठा मेरे बाद दिल-ए-अहबाब न मदफ़न पे जला मिस्ल-ए-चराग़ फिर गई ऐसी ज़माने की हवा मेरे बाद क़ब्र को तकिया-ए-आग़ोश बना कर बैठा मेरे क़ातिल का कहीं दिल न लगा मेरे बाद कारवाँ में पस-ओ-पेश एक है मंज़िल सब की हो गई रेहलत-ए-हर-शाह-ओ-गदा मेरे बाद टुकड़े होगा मेरे ग़म में सर-ए-साग़र साक़ी काट डालेगी सुराही भी गला मेरे बाद न रहा बुलबुल ओ परवाना को इश्क़-ए-गुल-ओ-शम्अ नाम को भी कोई आशिक़ न रहा मेरे बाद उस सा माशूक़ जहाँ में कोई मुझ सा आशिक़ 'अर्श' आगे न हुआ था न हुआ मेरे बाद