ख़ुश न आई तुम्हारी चाल हमें यूँ न करना था पाएमाल हमें हाल क्या पूछ पूछ जाते हो कभू पाते भी हो बहाल हमें वो दहाँ वो कमर ही है मक़्सूद और कुछ अब नहीं ख़याल हमें इस मह-ए-चारदह की दूरी ने दस ही दिन में किया हिलाल हमें नज़र आते हैं होते जी के वबाल हल्क़ा हल्क़ा तुम्हारे बाल हमें तंगी इस जा की नक़ल किया करिए याँ से वाजिब है इंतिक़ाल हमें सिर्फ़ लिल्लाह ख़म के ख़म करते न क्या चर्ख़ ने कलाल हमें मुग़-बचे माल मस्त हम दरवेश कौन करता है मुश्त-माल हमें कब तक उस तंगना में खींचिए रंज याँ से यारब तू ही निकाल हमें तर्क सब्ज़ान-ए-शहर करिए अब बस बहुत कर चुके निहाल हमें वज्ह किया है कि 'मीर' मुँह पे तिरे नज़र आता है कुछ मलाल हमें