ख़ुशी जो साया-ए-ग़म में रहे फिर वो ख़ुशी क्यों हो ग्रहन जो चाँद को लग जाए तो फिर चाँदनी क्यों हो अदा-ए-हुस्न-ए-दिल-कश को ज़रा समझे तो ये दुनिया तवज्जोह इस में पिन्हाँ है ये उन की बे-रुख़ी क्यों हो इसे कुछ और ही कहिए कि दिल दुखता है ये सुन कर जब इस में मौत शामिल है तो फिर ये ज़िंदगी क्यों हो अगर मिलिए किसी से आप तो दिल खोल कर मिलिए ख़ुलूस-ए-दिल ही जब न हो तो फिर मिल कर ख़ुशी क्यों हो ख़ुशी के वक़्त में क्यों ख़ास सदमे याद आते हैं कि होंटों पे हँसी के साथ आँखों में नमी क्यों हो अगर लालच से जन्नत के जहन्नुम की ये दहशत से किए जो उम्र भर सज्दे भी तो ये बंदगी क्यों हो जहाँ में और भी इक अजनबी बढ़ जाए तो क्या है न हो पाए किसी से दोस्ती तो दुश्मनी क्यों हो तमन्ना ख़ास दिल की उन से इस डर से नहीं कहते कि आग़ाज़-ए-मोहब्बत ही में उन से दुश्मनी क्यों हो हमें पीने की हसरत ही नहीं बाक़ी है अब 'साहिल' बुझा दी आंसुओं ने प्यास तो फिर तिश्नगी क्यों हो