ख़ुशी का साथ मिला भी तो दिल पे बार रहा मैं आप अपनी तबाही का ज़िम्मेदार रहा अधूरे ख़्वाब गए दिन अजान अंदेशे मिरी हयात पे किस किस का इख़्तियार रहा जो सब पे बोझ था इक शाम जब नहीं लौटा उसी परिंदे का शाख़ों को इंतिज़ार रहा वो कोई और ही जज़्बा था सिर्फ़ प्यार न था तुझे जो अपना जताने को बे-क़रार रहा न जाने किस का तअल्लुक़ था मेरे साथ 'वसीम' कोई भी दूर हुआ मुझ को साज़गार रहा