ख़ुशी मिली तो बहुत ही उदास बैठे रहे चला गया वो तो हम उस के पास बैठे रहे जमाल-ए-यार की लज़्ज़त बयान क्या करते नज़र में शौक़ बदन में हिरास बैठे रहे बरहनगी ही कुछ ऐसी थी शहर-ए-ग़ुर्बत की क़बा पहन के भी हम बे-लिबास बैठे रहे ये वाक़िआ' मिरी आँखों के सामने का है शराब नाच रही थी गिलास बैठे रहे इसी को हुस्न-ए-नज़र का कमाल कहते हैं तमाम शब तिरे लज़्ज़त-शनास बैठे रहे ठहर ठहर के वो दरिया बुला रहा था 'क़ैस' हम अपनी आँखों में भर भर के प्यास बैठे रहे