ख़ुश्क आँखों से कहाँ तय ये मसाफ़त होगी दिल को समझाया था अश्कों की ज़रूरत होगी रंग महलों के हसीं ख़्वाब से बच कर रहना है ख़बर गर्म कि ख़्वाबों की तिजारत होगी अपने घर ख़ुद ही पशेमान सा लौट आया हूँ मैं समझता था उसे मेरी ज़रूरत होगी मेरी तन्हाई सुकूँ देने लगी है मुझ को उस से मत कहना सुनेगा तो नदामत होगी ख़ुश्क लब प्यास की तस्वीर के अंदर रख दो प्यास बुझ जाएगी दरिया को भी हैरत होगी सिलसिला जलते चराग़ों का चलो ख़त्म हुआ तीरगी ख़ुश है हवाओं को भी राहत होगी कब सहर फूटेगी कोई तिरे ज़िंदानों से कब रिहाई मिरी ऐ शहर-ए-अज़िय्यत होगी जैसे मुमकिन हो इन अश्कों को बचाओ 'तारिक़' शाम आई तो चराग़ों की ज़रूरत होगी