ख़ुश-क़दाँ जब सवार होते हैं सर्व-ओ-क़ुमरी शिकार होते हैं तेरे बालों के वस्फ़ में मेरे शे'र सब पेचदार होते हैं आओ याद बुताँ पे भूल न जाओ ये तग़ाफ़ुल-शिआर होते हैं देख लेवेंगे ग़ैर को तुझ पास सोहबतों में भी यार होते हैं सदक़े हो लेवें एक-दम तेरे फिर तो तुझ पर निसार होते हैं तू करे है क़रार मिलने का हम अभी बे-क़रार होते हैं हफ़्त-इक़्लीम हर गली है कहीं दिल्ली से भी दयार होते हैं रफ़्ता रफ़्ता ये तिफ़्ल-ए-ख़ुश-ज़ाहिर फ़ित्ना-ए-रोज़गार होते हैं उस के नज़दीक कुछ नहीं इज़्ज़त 'मीर'-जी यूँ ही ख़ार होते हैं