ख़ुश-मिज़ाजी का दिखावा भी नहीं कर सकते हम वो काहिल हैं जो इतना भी नहीं कर सकते वो सुनाते हैं रिहाई के फरीज़े सब को जो रिहा एक परिंदा भी नहीं कर सकते कितने मजबूर हैं हम आम सी शक्लों वाले ख़ुद को ईजाद दोबारा भी नहीं कर सकते चाहते हैं जिसे दुश्मन की नवासी निकली अब तो हम इश्क़ अधूरा भी नहीं कर सकते इस लिए बनता नहीं तंज़ तमाशे पे मिरे याँ तो कुछ लोग तमाशा भी नहीं कर सकते जिस्म साँसो की सितमगार रवाना से मियाँ ऐसा बिखरा है इकट्ठा भी नहीं कर सकते