ख़ुश-रंग-ओ-तर-ओ-ताज़ा जवानी की तरफ़ आ प्यासा है तो बहते हुए पानी की तरफ़ आ कुछ पल के लिए अपने फ़साने का वरक़ मोड़ फ़ुर्सत से कभी मेरी कहानी की तरफ़ आ तर्सील नहीं होती तिरी फ़िक्र-ए-रसा की ऐ ज़ूद-बयाँ हुस्न-ए-मआ'नी की तरफ़ आ परवाज़ की ख़्वाहिश है तो दीवार-ए-क़फ़स तोड़ जीना है तो अब नक़्ल-ए-मकानी की तरफ़ आ जौहर तो खुले तीर-ओ-सिनाँ का तिरे 'अख़्तर' लड़ना है तो हम दुश्मन-ए-जानी की तरफ़ आ