ख़्वाब आँखों के ये बे-जान कहाँ होते हैं रास्ते सब्र के आसान कहाँ होते हैं जो गए आप तो तन्हाई यहाँ रहने लगी कि नगर दिल के ये वीरान कहाँ होते हैं कोई मर जाए सिसकता रहे दम भरता रहे हँसने वाले ये परेशान कहाँ होते हैं दर्द तो शोर मचाता है अकेले मन में दिल के दालान भी सुनसान कहाँ होते हैं कोई क़ातिल भी अगर तख़्त पे क़ब्ज़ा कर ले लोग कम-ज़र्फ़ ये हैरान कहाँ होते हैं ना-ख़ुदाओं ने सँभाली है ये दुनिया जब से ढूँढती फिरती हूँ भगवान कहाँ होते हैं चलती फिरती हुई बे-जान मशीनें हैं ये सब वो जो इंसान थे इंसान कहाँ होते हैं ये ब-जुज़ दोस्तों के और अता किस की है ना-तवाँ वर्ना ये पैमान कहाँ होते हैं ग़म की शिद्दत मुझे रोने नहीं देती क्यूँकि रंज-ओ-ग़म दर्द के एहसान कहाँ होते हैं दिल को समझा लिया कहते हुए 'फ़हमी' इतना पूरे हो जाएँ वो अरमान कहाँ होते हैं