ख़्वाब की राह में आए न दर-ओ-बाम कभी इस मुसाफ़िर ने उठाया नहीं आराम कभी रश्क-ए-महताब है इक दाग़-ए-तमन्ना कब से दिल का नज़्ज़ारा करो आ के सर-ए-शाम कभी शब-ब-ख़ैर उस ने कहा था कि सितारे लरज़े हम न भूलेंगे जुदाई का वो हंगाम कभी सरकशी अपनी हुई कम न उम्मीदें टूटीं मुझ से कुछ ख़ुश न गया मौसम-ए-आलाम कभी हम से आवारों की सोहबत में है वो लुत्फ़ कि बस दो घड़ी मिल तो सही गर्दिश-ए-अय्याम कभी ऐ सबा मैं भी था आशुफ़्ता-सरों में यकता पूछना दिल्ली की गलियों से मिरा नाम कभी नुदरत-ए-फ़िक्र ने गर साथ जो छोड़ा तो 'नईम' अपने सर लेंगे ततब्बो का न इल्ज़ाम कभी