ख़्वाब में देख रहा हूँ कि हक़ीक़त में उसे मैं कभी देख नहीं सकता मुसीबत में उसे वो मिरा यार-ए-तरह-दार कि ख़ुश-फ़हम भी है कोई धोका ही न दे जाए मोहब्बत में उसे ज़िंदगी हो तो कई काम निकल आते हैं याद आऊँगा कभी मैं भी ज़रूरत में उसे इक तअल्लुक़ था कि शीशे की तरह टूट गया जोड़ सकता ही नहीं मैं किसी सूरत में उसे आज तक जिस्म मिरा टूट रहा है 'फ़ाज़िल' मैं ने देखा था कभी नींद की हालत में उसे