ख़्वाब सितारे होते होंगे लेकिन आँखें रेत दिन दरियाओं के हम-जोली हैं और रातें रेत एक फ़क़ीर ने मेरी जानिब देखा और फिर मैं मिट्टी की ढेरी की सूरत था और साँसें रेत मैं सरसब्ज़ जज़ीरे जैसा था पर दश्त हुआ उस ने मुझ से इतना कहा था तेरी बातें रेत मोती टूटने लगते हैं जब पत्थर बात करें आईनों को दुख होता है जब हम बोलें रेत कभी कभी जी चाहता है कि तन्हा कमरे में हम काग़ज़ पर अश्क बनाएँ और फिर लिक्खें रेत 'ज़ाहिद' रात की ख़ामोशी में कोई कहता है दानिश-वानिश अक़्लें-वक़्लें सोचें-वोचें रेत