ख़्वाब यूँ ही नहीं होते पूरे जान-आे-तन लगते हैं पूरे पूरे रास आएगी मोहब्बत उस को जिस से होते नहीं वादे पूरे छोड़ आए तिरे हिस्से के दोस्त हम ने मंज़र नहीं देखे पूरे गुफ़्तुगू होश-रुबा है उस की उस की बातें हैं सहीफ़े पूरे हिज्र और रात तक़ाबुल में हैं अश्क पूरे कि सितारे पूरे याद हूँ आधा सा ख़ुद को 'अहमद' नक़्श आईने में कब थे पूरे